उड़ना राजकुमार पृथ्वीराज सिसोदिया
पृथ्वीराज सीसोदिया मेवाड़ के महाराणा रायमल और झाला वंश की रानी रतनकँवर के ज्येष्ठ पुत्र थे | मेवाड़ में इन्होने अपने खर्च से एक नई सेना का गठन किया और मेवाड़ विरोधी शासको को दंड दिया था |इतिहासकार मुहणोत नैंणसी के अनुसार इन्होने टोडा और जालौर जो आपस में ५०० मील की दुरी पर है वहा एक ही दिन में धावा बोला| इस प्रकार तीव्र गति से आक्रमण के कारण इन्हे इतिहास में " उड़ना राजकुमार " के नाम से जाना जाता हैं |
एक समय जब रायमल किसी बादशाह के सिपहसलार से शांत भाव से बातचीत कर रहे थे तो पृथ्वीराज ने पूछा की "महाराणा आप एक शासक होकर किस प्रकार से बातचीत कर थे" तो महाराणा ने कहा "पृथ्वीराज तुम्हे तो राजाओं को दबाना आता है लेकिन मुझे तो अपने राज्य की रक्षा करनी है" | इससे से रुष्ट होकर पृथ्वीराज मेवाड़ से नीमच पहुच कर अपनी ५००० सैनिको की फौज बनाई और देपालपुर को लूट कर वहा के हाकिम को पराजित कर दिया | इस बात से क्रोधित होकर मालवा के सुल्तान महमूद ने मेवाड़ पर आक्रमण हेतु मांडू में डेरा डाला | इस बात को भांप कर पृथ्वीराज ने मांडू पर ही कर मेहमूद के सारे केम्पो को नष्ट कर सुल्तान महमूद को बंधी बनाकर ऊंट पर डाल मेवाड़ ले आये| जहा उसे एक डेढ़ माह कैद रखकर बाद में उपहार स्वरूप घोड़े, रत्न और सोना-चांदी लेकर छोड़ दिया|
इनके बारे में कहा जाता है की एक बार पृथ्वीराज , संग्रामसिंह (सांगा ), जयमल तीनो राजकुमार अपनी जन्मपत्रिकाए लेकर एक ज्योतिष के पास गए और पूछा की "हम में से राजा कौन बनेगा" तो ज्योतिष ने कहा कि "राजा बनने का सबसे ज्यादा योग तो संग्रामसिंह के है" | इस बात को लेकर राजकुमारों में विवाद हो गया और एक दूसरे को मारने पर उतारू हो गए इससे तलवार की हुक लगने से सांगा की एक आँख फुट गयी इस पर रायमल के चाचा सारंगदेव ने बीच बचाव किया | बाद में सारंगदेव के कहने पर वो भीमलगाव की चारण जाति की पुजारिन के पास गए तो पुजारिन ने भी यही कहा की "राजा तो संग्रामसिंह ही बनेगा"| इस पर पृथ्वीराज और जयमल ने सांगा पर आक्रमण कर दिया| तो सांगा भागकर सेवन्त्री गांव पहुंचे वहा पीछा करते हुए आये जयमल और सांगा की लड़ाई में राव बीदा ने सांगा को शरण दी और जयमल वही लड़ते मारा गया(सेवन्त्री गांव लेख से ज्ञात ) | बाद में सांगा वहा गौंडवाड़ होते हुए अजमेर पहुंच गए| जब रायमल को इस बात का पता चला तो उन्होंने पृथ्वीराज को कहा की "तुम मेरे होते हुए भी स्वयं को राजा बनाना चाहते हो मै तुम्हारी शक्ल नहीं देखना चाहता " | इस बात से नाराज हो पृथ्वीराज ने मेवाड़ छोड़ दिया | पश्चात् उन्होंने गोडवाड़ क्षेत्र में एक महाजन से कर्ज लेकर सैन्य दल बनाया और वहा के उद्धंडी मीणो और आदिवासियो को परास्त कर मेवाड़ की शरण में भेज दिया|
कुछ बाद जब टोडा के सौलंकी राजा पर अफ़ग़ान लाल खां ने आक्रमण किया तो वे भागकर मेवाड़ रायमल की शरण में चले गए | परन्तु उनकी पुत्री तारा कँवर जिसने प्रतिज्ञा की थी कि में विवाह उसी से करुँगी जो टोडा हमें वापस दिलाएगा और तब तक में कभी स्त्री वेश धारण करुँगी| तब से वह क्षत्रिय वेश में ही रहती थी| जब राजकुमारी तारा कँवर की बेहतरीन घुड़सवारी और तलवारबाज़ी के चर्चे जब पृथ्वीराज ने सुने तो उसने कहा "इस राजकुमारी से विवाह तो मै ही करूँगा"| इसके बाद पृथ्वीराज ने राजकुमारी से विवाह स्वरुप टोडा दिलाने का वचन देकर राजकुमारी तारा कँवर और पृथ्वीराज ने ५०० राजपूतो के साथ टोडा पर आक्रमण कर उसे विजित कर लिया| इस बात की जानकारी जब अजमेर के हाकिम मल्लू खां को लगी तो उसने टोडा पर आक्रमण करने की सोची पर इससे पहले ही पृथ्वीराज और राजकुमारी तारा कँवर ने अजमेर पर आक्रमण कर मल्लू खां को परास्त कर दिया| अजमेर के किले पर अपना अधिकार करके उसका नाम अपनी भावी पत्नी राजकुमारी तारा कँवर के नाम पर तारागढ़ रख दिया |
पृथ्वीराज के बारे में कहा जाता है की एक बार उनकी भुआ रमा बाई (कुम्भा की पुत्री ) के बारे में पता चला की उनके पति गिरनार के राजा मंडलीक उन्हें बहुत प्रताड़ित करते है तो वे गिरनार में सीधे मंडलीक के महल जा पहुंचे | वो मंडलीक को दंड देने ही वाले थे को रमाबाई ने उन्हें रोक लिया| परन्तु अपनी हठ और वचन के कारण मंडलीक के कान का एक हिस्सा काट लिया और रमाबाई के सुहाग की लाज रख ली और उन्हें अपने साथ लेकर मेवाड़ आ गए |
पृथ्वीराज के चाचा सारंगदेव जिन्होंने सभी भाइयो के बीच में गृहयुद्ध छिड़वा दिया था क्युकी वह स्वयं मेवाड़ का राणा बनना थे |उन्हे पता चला की ने पृथ्वीराज मेवाड़ छोड़ दिया है फलस्वरूप उन्होंने मालवा सुल्तान नसीरुद्दीन के साथ मिल कर मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया|
इस युद्ध के फलस्वरूप रायमल घायल हो गए थे और पराजय होने वाली थी की १००० घुड़सवारों के साथ आकर पृथ्वीराज ने युद्ध की पराजय को जीत में बदल दिया | कहते है की युद्ध के बाद पृथ्वीराज और चाचा सारंगदेव ऐसे मिलते थे की उनके बीच में कोई द्वेष ही नहीं है|
एक बार जब उन्हें अपनी बहन आनंदीबाई का पत्र मिला तो पता चला की सिरोही के राव जगमाल उनके साथ बहुत ही ज्यादा अत्याचार करते है तो एक भाई अपने बहन के राखी की लाज रखने के लिए आधी रात को महलो में जा पहुंचे| वे जगमाल को मृत्युदंड देने ही वाले थे तो उनकी बहन ने अपने सुहाग की भीख मांगी तो उन्होंने जगमाल को माफ़ कर दिया | दूसरे दिन जगमाल ने माफ़ी मांग उनका भव्य स्वागत किया | बाद में जब वे ववहा से मेवाड़ के लिए वापस निकले तो उनके बहनोई जगमाल ने उन्हें चूर्ण की गोलिया भेंट की जिनको बनाने में जगमाल को महारथ हासिल थी | कुम्भलगढ़ के पास जब उन्होंने उन जहर मिली चूर्ण की गोलियों को खाया तो उनकी मृत्यु हो गयी| एक महान योद्धा की यदि इस प्रकार मृत्यु नहीं हुई होती तो शायद भारत का इतिहास ही अलग होता |
इसलिए कुछ इतिहासकारो का मत है की यदि सांगा जैसे आत्मरक्षक शासक की बजाय यदि तीव्र आक्रमणकारी पृथ्वीराज शासक होते तो शायद भारत में मुग़ल सल्तनत इतिहास में कभी न होती|
इतिहास के गुम ऐसे ही वीर थे "उड़ना राजकुमार पृथ्वीराज सिसोदिया" |
Prathvi raj sisodia ke ghode ka kya naam tha
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