मंगलवार, 31 मार्च 2020

Rajasthani Kahavat

इंसान की पहचान 



तारो की ओट में चंद्र छुपे न , सूर्य छुपे  बादल छाया  | 
चंचल नार के नैन छुपे ना, भाग्य छुपे ना भभूत लगाया  | 
रण  चढ़िया रजपूत छुपे न, दातार छुपे न घर मांगण  आय |
कवि गंग कहे सुन शाह अकबर, गुण  छुपे न सत्संग आया| 
जो कुछ लिखा ललाट पर मैट  सके ना कोय, कोटि यतन करते फिरो अनहोनी ना होय || 

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