इंसान की पहचान
तारो की ओट में चंद्र छुपे न , सूर्य छुपे बादल छाया |
चंचल नार के नैन छुपे ना, भाग्य छुपे ना भभूत लगाया |
रण चढ़िया रजपूत छुपे न, दातार छुपे न घर मांगण आय |
कवि गंग कहे सुन शाह अकबर, गुण छुपे न सत्संग आया|
जो कुछ लिखा ललाट पर मैट सके ना कोय, कोटि यतन करते फिरो अनहोनी ना होय ||
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें